Tuesday, September 26, 2023



मिलने पर बताऊंगा  

दिन-दिन भर ऐसे ही बैठा रहूं 

बीते दिन की यादों में खोया रहूँ 

पूरा दिन पता नहीं कैसे बीत जाता है 

मुझको हरा के ये समय जित जाता है 

बहुत सी है बाते जो तुमको सुनाऊंगा 

ये सारी बाते मै मिलाने पर बताऊंगा 


वो वाला तुमने जो परचा लिखा था 

वही परचा जिसका चरचा हुआ था 

व्याकरण में उसके उलझ रह जाती हो 

मात्रा को अब भी मै सुलझ नहीं पाती हो  

व्याकरण की बाते मैं तुमको सुनाऊंगा 

कैसे ठीक करना है वो मिलने पर बताऊंगा 


आँगन में तुमने जो पौधा लगाया था 

पौधा जिसे आँचल से सहलाया था 

एकटक निगाहों से मुझे देखा करता है 

मेरे साथ साथ शायद तुम्हे ढूंढा करता है 

उस पौधे की सारी बाते मैं बताऊंगा 

कैसा दिखता है वो मिलाने पर बताऊंगा 


हर सुबह जब भी मैं चाय बनता हूँ 

ख्वाब तुमसे मिलने के बुनता बनाता हूँ 

प्याली एक चाय की सामने जो आती है 

उस प्याली में तेरी तस्वीर दिख जाती है 

चाय बनाके मैं तुमको पिलाऊंगा  

चाय पर की बातें सब मिलने पर बताऊंगा 


यूनिवर्सिटी की बातें क्या याद है?

सख्त वाले सर् की डांटे क्या याद हैं?

कैंपस में घूमती हुई गाय याद आती है

कोने वाले कैंटीन की चाय याद आती है

इस नए कैंपस की बाते मैं बताऊंगा

क्या नई सुविधाएं है वो मिलने पर बताऊंगा


साथ जो फरमाई थी वो इश्कियां क्या भूल गयी?

सुनसान रातों की वो शिसकियाँ तुम भूल गयी?

जाड़ा तो अब भी है और वही महीना है

पर गायब है जो वो माथे का पसीना है 

अपनी नई रातों की कहानी मैं सुनाऊंगा

कैसे कटतीं है ये वो मिलने पर बताऊंगा


संगम की अपनी मुलाकात याद आती है 

माघ मेले की वो रात याद आती है 

तेरे बिन ये संगम पूरा नहीं लगता है 

नदियों का मिलना भी अधूरा सा लगता है 

इस माघ मेले की बाते मैं बताऊंगा 

कैसा मेला दिखता है वो मिलने पर बताऊंगा 

मिलने पर बताऊंगा 

                                                                                                           प्रो. रणजीत सिंह